वो 98 बच्चों की 'मां' हैं

जयपुर की मनन चतुर्वेदी उन 98 बच्चों की माँ हैं जिन्हें पैदा होते ही भाग्य की बिसात पर बेसहारा छोड़ दिया गया.
जयपुर की 'सुरमन' संस्था की चार दीवारी में एक माँ हैं और छोटे-बड़े 98 बच्चे. ये वो बच्चे हैं जिन्हें उनके जन्मदाता माता-पिता ने किसी सुनसान जगह पर छोड़ दिया.
कोई किसी कूड़े के ढेर पर मिला था तो कोई अस्पताल में लावारिस छोड़ दिया गया था. मनन ने अपनों के हाथों भुला-बिसरा दिए गए इन बच्चों को सीने से लगा लिया ताकि इन बच्चों के माथे पर यतीम होने की इबारत चस्पा न हो.
अपने आंगन में खेल रहे एक एक बच्चे के सिर पर दुलार का हाथ फेरते हुए मनन कहती हैं, "मैं माँ हूँ, ये ही मेरा इन बच्चों से रिश्ता है."
मनन की ममता में अपने पराये का कोई भेद नहीं है. उनकी कोख से जन्मे तीन बच्चे- दो बेटियां और एक बेटा भी इन बच्चों के साथ तरह रहते हैं.
वो कहती हैं, ''हमारा ये संयुक्त परिवार है. सब मिल जुलकर रहते हैं जैसे सगे भाई बहन हों. मेरे लिए सब बराबर हैं. क्योंकि मैं एक माँ हूं."."
'सुरमन का अपनापन'
अब इन बच्चों की फुलवारी उनकी दुनिया है. शुरू में उनके परिवार वालों को अजीब सा लगा लेकिन जब मनन में ख़िदमत का जज़्बा देखा तो वे भी मदद को तैयार हो गए.
मनन ने इस काम के लिए सरकार के आगे हाथ नहीं फैलाए. अपने दम पर उन्होंने संसाधन जुटाए. अब वो जयपुर के पास एक हज़ार बच्चों का एक गांव बसाना चाहती हैं. इसके लिए मनन संसधान जुटा रही है.
17 साल की उपासना पिछले तीन साल से मनन के सुरजन में रह रही हैं. वो 12वीं कक्षा में पढ़ती हैं. माँ के बारे में पूछने पर उपासना बाकी बच्चों की तरह मनन को 'माँ-माँ' कहती हुई मनन के गले से लिपट जाती हैं.
इस संस्था के दायरे में कभी मनन किसी बच्चे को उंगली पकड़ कर चलाती हैं, कभी बलाएं लेती हैं और कभी वो रूठे बच्चों को मनाती हैं.
मनन इन बच्चों को इतना प्यार देती हैं. इसे देखकर सवाल उठता है कि क्या ये बच्चे कभी अपने माता-पिता के बारे में पूछते हैं?
मनन कहती हैं, "जो बहुत कम उम्र में आते हैं उनके लिए ये ही अपना संसार है लेकिन जो बच्चे थोड़ी बड़ी उम्र में 'सुरमन' आते हैं कभी-कभी वे ज़रूर यादों में खो जाते हैं. मगर हम उन्हें कभी पराएपन का अहसास नहीं होने देते."
मनन का इन बच्चों से यही रिश्ता उन्हें हौसला देता है.

वो 98 बच्चों की 'मां' हैं
जयपुर की मनन चतुर्वेदी उन 98 बच्चों की माँ हैं जिन्हें पैदा होते ही भाग्य की बिसात पर बेसहारा छोड़ दिया गया.
जयपुर की 'सुरमन' संस्था की चार दीवारी में एक माँ हैं और छोटे-बड़े 98 बच्चे. ये वो बच्चे हैं जिन्हें उनके जन्मदाता माता-पिता ने किसी सुनसान जगह पर छोड़ दिया.
कोई किसी कूड़े के ढेर पर मिला था तो कोई अस्पताल में लावारिस छोड़ दिया गया था. मनन ने अपनों के हाथों भुला-बिसरा दिए गए इन बच्चों को सीने से लगा लिया ताकि इन बच्चों के माथे पर यतीम होने की इबारत चस्पा न हो.
अपने आंगन में खेल रहे एक एक बच्चे के सिर पर दुलार का हाथ फेरते हुए मनन कहती हैं, "मैं माँ हूँ, ये ही मेरा इन बच्चों से रिश्ता है."
मनन की ममता में अपने पराये का कोई भेद नहीं है. उनकी कोख से जन्मे तीन बच्चे- दो बेटियां और एक बेटा भी इन बच्चों के साथ तरह रहते हैं.
वो कहती हैं, ''हमारा ये संयुक्त परिवार है. सब मिल जुलकर रहते हैं जैसे सगे भाई बहन हों. मेरे लिए सब बराबर हैं. क्योंकि मैं एक माँ हूं."."
'सुरमन का अपनापन'
अब इन बच्चों की फुलवारी उनकी दुनिया है. शुरू में उनके परिवार वालों को अजीब सा लगा लेकिन जब मनन में ख़िदमत का जज़्बा देखा तो वे भी मदद को तैयार हो गए.
मनन ने इस काम के लिए सरकार के आगे हाथ नहीं फैलाए. अपने दम पर उन्होंने संसाधन जुटाए. अब वो जयपुर के पास एक हज़ार बच्चों का एक गांव बसाना चाहती हैं. इसके लिए मनन संसधान जुटा रही है.
17 साल की उपासना पिछले तीन साल से मनन के सुरजन में रह रही हैं. वो 12वीं कक्षा में पढ़ती हैं. माँ के बारे में पूछने पर उपासना बाकी बच्चों की तरह मनन को 'माँ-माँ' कहती हुई मनन के गले से लिपट जाती हैं.
इस संस्था के दायरे में कभी मनन किसी बच्चे को उंगली पकड़ कर चलाती हैं, कभी बलाएं लेती हैं और कभी वो रूठे बच्चों को मनाती हैं.
मनन इन बच्चों को इतना प्यार देती हैं. इसे देखकर सवाल उठता है कि क्या ये बच्चे कभी अपने माता-पिता के बारे में पूछते हैं?
मनन कहती हैं, "जो बहुत कम उम्र में आते हैं उनके लिए ये ही अपना संसार है लेकिन जो बच्चे थोड़ी बड़ी उम्र में 'सुरमन' आते हैं कभी-कभी वे ज़रूर यादों में खो जाते हैं. मगर हम उन्हें कभी पराएपन का अहसास नहीं होने देते."
मनन का इन बच्चों से यही रिश्ता उन्हें हौसला देता है.