बेहतर समाज के लिए

'लीन इन: वुमेन, वर्क एंड विल टु लीड' की लेखिका और फेसबुक की चीफ ऑपरेटिंग ऑफिसर शर्ली आई सैडबर्ग बता रही हैं कि महिलाओं को अवसर देते हुए हमारी संस्थाएं और बेहतर बन सकती हैं।
अभी हमें पुरुषों के मुकाबले असल बराबरी मिली ही नहीं है। उसे पाने से पहले हमें उन सांस्कृतिक और स्टीरियोटाइप मुद्दों पर बात करनी होगी जो औरत की पीठ पर लदे हुए हैं। इस दशक में हर कहीं महिलाओं के लिए विकास की गति बहुत धीमी रही है। मुझे तो लगता है कि हम जेंडर पर बात करने में ही घबराते हैं। मेरी किताब का मूल विषय ही है- लड़कियों और महिलाओं को खुला अवसर मिलना। उन्हें वैसे ही अवसर मिलने चाहिए जैसे लड़कों और पुरुषों को मिले हुए हैं। खासतौर पर नेतृत्व करने के अवसर। मैं आपको एक कहानी बताती हूं। एक महिला ने लिखा- 'शुरुआत में मेरा जॉब सप्ताह में चार ही दिन का था। लेकिन फिर अचानक मुझे लगा कि मैं तो एक दिन एक्स्ट्रा काम कर रही हूं। होता दरअसल यह था कि मेरा बॉस अक्सर मेरे ऑफ के दिन कोई न कोई मीटिंग रख लेता और मुझे जाना पड़ता। यह किताब पढ़ने के बाद एक दिन मैंने तय कर लिया कि बॉस से बात करूंगी। मैंने बात की, और बॉस ने न सिर्फ माफी मांगी बल्कि यह भी कहा कि वह आगे से ऐसा नहीं करेगा।' आंकड़े बताते हैं कि हम सब बायस्ड हैं। मेरे पिता भी इस 'हम' में शामिल हैं। हम लोग इसी तरह पले बढ़े हैं। लेकिन खतरनाक वे लोग हैं जो यह मानने को तैयार ही नहीं हैं कि वे बायस्ड हैं। ऐसे ही लोग महिलाओं से ज्यादा भेदभाव करते हैं। मेरे लिए बहुत जरूरी है कि पुरुष मेरी यह किताब पढ़ें और चल रही बहस में भागीदारी करें। जो पुरुष जेंडर के मामले में संवेदनशील हैं, वे अपने घरों पर बेहतर नजर आते हैं। रिसर्च भी बता रही हैं कि जो पुरुष घर के कामकाज में हाथ बंटाते हैं और बच्चों की देखरेख में सहयोग करते हैं, वे ज्यादा खुश रहते हैं। उनके बच्चे भी अपनी पढ़ाई और काम में अच्छा प्रदर्शन करते हैं। घर पर पुरुषों के लगाव के कई रचनात्मक कारण हैं। मैं भारत में लंबे समय काम कर चुकी हूं। महिलाओं को जितना मौका लीडरशिप का मिलेगा, संस्थाएं उतनी ही बेहतर होती चली जाएंगी।